जगदलपुर, 15 अप्रैल। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की कथा कृति ‘दालिया’ आधारित नाटक की प्रस्तुति नगर में की गई। सुपरिचित लेखक * ह्रषिकेश सुलभ* ने इसका नाट्य रूपांतरण किया है।
प्रसिद्ध निर्देशक *जी एस*मनमोहन* और कलाकारों ने अनूठे अंदाज़ में कलागुड़ी के मुक्ताकाशी मंच पर नवजनरंग के बैनर तले , यह नाटक खेला। अनूठे अंदाज़ में इसलिए क्योंकि जब दर्शक नाटक देखने के साथ -साथ एक बीते समय को जीने लग जाएं, तो ही ऐसी कालजयी कृति का सारतत्व प्रेक्षकों तक पहुंच सकता है । नाटक जब इतिहास से संकेत ‘ ले’ रहा हो तब रचनाकार के साथ -साथ निदेशक की भूमिका सजग होनी आवश्यक है। बहुत बड़ी बात है कि इसे अच्छी तरह ध्यान में रखते हुए लेखन और नाट्य प्रस्तुति में रचनात्मक अभिव्यक्ति की पूरी गुंजाइश रखी गई । नाट्य रूपांतरण में ह्रषिकेश सुलभ ने इसका ध्यान रखा है और निदेशक जी एस मनमोहन जैसे सुदीर्घ अनुभवी निर्देशक के हाथों में आकर नाटक अपनी पूरी रंगत के साथ रंग बिखेरने में सफल रहा । सुधी दर्शकों ने प्रत्येक दृश्य बंध में इसे बख़ूबी महसूस किया।
नाटक की बहुत बड़ी ख़ूबी रही रंगमंचीयता और अभिनेयता । इन दोनों के माध्यम से नाट्य – कथ्य , सहजता से, आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया गया।
अच्छी बात यह भी कि नाटक इतिहास की घटना को यथावत् , यंत्रवत् रखने की कोशिश नहीं करता अपितु पारंपरिक इतिहास के स्थान पर नाटकीय घटना के रूप में, इतिहास के पगचिह्न दिखाता है। यह किसी अमर कहानी के नाट्य मंचन की बड़ी विशेषता कही जाएगी। करीम