जगदलपुर – बस्तर की अनोखी परंपराओं में से एक गोंचा उत्सव के साथ मनाया जा रहा है.यह आयोजन भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के रूप में होता है, जिसे स्थानीय बोली में गोंचा कहा जाता है.बस्तर की रथयात्रा मे खास बात यह है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथयात्रा के दौरान श्रद्धालु उन्हें तूपकी (बांस से बनी पारंपरिक बंदूक) से सलामी देते हैं. तूपकी में एक विशेष प्रकार का जंगली फल—जिसे पेंग फल कहा जाता है—भरकर चलाया जाता है.यह प्रतीकात्मक गोलाबारी एक पवित्र और सांस्कृतिक रस्म है, जिससे भगवान को सम्मान प्रकट किया जाता है.बताया जाता है कि यह परंपरा करीब 600 वर्षों पुरानी है और बस्तर के तत्कालीन शासक महाराजा पुरुषोत्तम देव द्वारा शुरू की गई थी.वे पुरी यात्रा से लौटते वक्त भगवान जगन्नाथ की पूजा पद्धति को बस्तर लाए और तब से गोंचा उत्सव हर वर्ष बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं.
त्योहार के दौरान आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक परिधान में तुपकी लिए रथयात्रा में भाग लेते हैं. ढोल, मांदर, नृत्य और गीतों के साथ यह यात्रा धार्मिकता और लोकपरंपरा का अद्भुत संगम बन जाती है.
गोंचा में तूपकी से दी जाती है भगवान जगन्नाथ को सलामी
