गंगाजल भगवान विष्णु की चरणामृत, सम्मान दें- कृष्णा महाराज

जगदलपुर, 10 मार्च । गंगाजल भगवान विष्णु की चरणामृत है। गंगाजी को सूर्य का प्रकाश दिखाकर रोज पीना चाहिए। इससे गंगाजल की शक्ति बढ़ जाती है। गंगाजी को कैद कर रखना नहीं चाहिए। गंगाजल को तांबे के पत्र में रखना उचित है, किंतु हम गंगाजल की महिमा को नजरंदाज कर प्लास्टिक आदि पात्र में रख घर में यत्र तत्र छोड़ देते हैं। गंगा लक्ष्मी और सूर्य नारायण हैं। गंगा का दर्शन करना, इसे पीना, गंगा में नहाना और घर में रखना पुण्य माना जाता है। गंगाजल, पंचामृत और को पीते समय मुंह से आवाज नहीं आनी चाहिए। उक्त बातें श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के छठवें दिन सोमवार को गंगा महिमा की कथा बाँचते हुए भागवताचार्य कृष्ण कुमार तिवारी ने कही।
मां दंतेश्वरी मंदिर में आयोजित श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के सातवें दिन राधारानी, तुलसी माता की महिमा तथा शंखचूर्ण दैत्य की कथा का श्रवण भक्तों ने किया। उन्होंने बताया कि गंगा तीनो लोक में है। स्वर्ग में इसे मंदाकिनी, पृथ्वी में अलकनंदा और पाताल लोक में भोगवती कहा जाता है। गंगाजी तीनों लोकों में पूजनीय हैं।

आक्रोश में कोसना गलत

राधारानी की कथा बांचते हुए उन्होंने बताया कि गो लोक में राधारानी भगवान को बहुत प्रेम करती थीं, अगर कोई भगवान को निहारता तो किसी को भी श्राप दे देती थीं। एक बार श्रीदामा नामक गोपी ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, तो राधारानी क्रुद्ध हो गईं और सुदामा को ही राक्षस होने का श्राप दे दिया। इस बात से नाराज सुदामा ने भी राधारानी को श्राप दिया कि जिस भगवान के कारण आप बात – बात में लोगों को श्राप देती हैं। उससे 100 साल तक दूर रहकर वियोग सहोगी। इस श्राप के चलते ही वह धरती में वृषभान के घर जन्मी और श्रीकृष्ण वियोग सहती रही।

समानता का व्यवहार जरूरी

भगवान सब जानते हैं तो राहू – केतु को अमृत कैसे मिल गया? इस प्रश्न के प्रत्युत्तर में आचार्य ने बताया कि जब कोई व्यक्ति पंक्ति में बैठ जाता है तो उसे समानता का अधिकार मिल जाता है। ऐसे में किसी व्यक्ति को पंक्ति से उठाना नैतिकता के खिलाफ है। सब जानते हुए भी भगवान विष्णु ने सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करने पंक्ति में बैठे राहु – केतु को पहले अमृत पिलाया किंतु उन्हें छल पूर्वक अमृतपान करने के कारण उन्हें सजा भी दी।

कालरात्रि ने किया नगर भ्रमण

भागवत महापुराण के छठवें दिन की कथा के तुरंत बाद सैकड़ों श्रोताओं द्वारा मां दंतेश्वरी चालीसा का सस्वर पाठ किया गया। तत्पश्चात मां कालरात्रि की पालकी निकाली गई। यह पालकी नियमानुसार सिरहासार चौक, गोल बाजार, मिताली चौक, पैलेस रोड होते हुए मां दंतेश्वरी मंदिर लौटी, तत्पश्चात् आरती की गई।

आज के अनुष्ठान

श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के सातवें दिन मंगलवार को दंतेश्वरी चालीसा, मां कालरात्रि महात्म, तुलसी कथा, तुलसी महिमा का वर्णन किया जाएगा।

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