– परंपरा और संवेदनशीलता की अनदेखी कर केंद्रीय गृह मंत्री ने क्या नही किया मुरिया दरबार की परंपरा का अपमान?– राजेश चौधरी
प्रेस विज्ञप्ति में राजेश चौधरी नेता प्रतिपक्ष नगर निगम जगदलपुर में बताया कि बस्तर का ऐतिहासिक दशहरा त्योहार, जो 75 दिनों तक चलता है, पूरे देश तथा विदेशों में अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं और आदिवासी सहभागिता के लिए जाना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि बस्तर की आत्मा, उसकी परंपरा और जनसंवाद का भी उत्सव है।
मां दंतेश्वरी के प्रांगण में प्रतिवर्ष सैकड़ों देवी-देवताओं की उपस्थिति, और अंचल भर के समाजों द्वारा निभाई जाने वाली पारंपरिक रस्में जैसे डेरी गढ़ाई से लेकर माता की विदाई तक। इस महापर्व को विशेष बनाते हैं। दशहरा त्योहार पर माता जी की विदाई के पूर्व मुरिया दरबार होता है, जो बस्तर के ग्रामीणों के लिए जनसुनवाई और समस्याओं के तत्काल निराकरण का एक ऐतिहासिक मंच रहा है।
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किन्तु इस वर्ष, दशहरा इतिहास में पहली बार एक बेहद चिंताजनक घटना घटी। बोधघाट परियोजना से प्रभावित करेकटा परगना के मंगलू मांझी ने मुरिया दरबार में अपनी पीड़ा और विस्थापन की आशंका को लेकर सवाल उठाए। कि “बोधघाट परियोजना के कारण जब हमें गांव से हटाया जाएगा, तो हमें कहां बसाया जाएगा?”
यह अत्यंत दुखद है कि मुरिया दरबार जैसी परंपरागत जनसुनवाई की गरिमामयी सभा में इन प्रश्नों का न तो कोई जवाब मिला और न ही कोई संतोषजनक आश्वासन।
जबकि इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, अन्य मंत्रीगण, बस्तर सांसद, विधायकगण बस्तर महाराजा के वंशज और कई आदिवासी नेता स्वयं उपस्थित थे, उनके मौन ने यह दर्शाया कि वे बस्तरवासियों की पीड़ा के प्रति कितने असंवेदनशील हैं। यह बस्तरवासियों के विश्वास और परंपरा के साथ अन्याय है।
मुरिया दरबार का मूल उद्देश्य ही रहा है ग्रामीणों की बात सुनना, उनकी समस्याओं का समाधान तत्काल करना और न्याय देना। आज जब इस परंपरा का इस प्रकार से निरादर हुआ है, तो यह केवल सवालों का अनुत्तरित रह जाना नहीं है, बल्कि यह बस्तर की आत्मा को चोट पहुंचाने जैसा है। साथ ही मां दंतेश्वरी मंदिर जगदलपुर के आसपास के क्षेत्र में प्रतिवर्ष सुदूरांचल क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा पसरा बाजार लगाकर विभिन्न प्रकार के औजार घरेलू उपयोग के समान तथा वन संपदा से बने कई उपयोगी औषधि,कपड़ों,मिष्ठान आदि का व्यापार भी सदियों से करते आ रहे हैं परंतु यह भी पहली बार हुआ की केंद्रीय गृह मंत्री की उपस्थिति के कारण से उन ग्रामीणों के तथा शहर वासियों की व्यापार को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया तथा आर्थिक रूप से उन्हें हानि पहुंचाई गई जो की बस्तर की जनता के साथ सरासर अन्याय है। शहर की कई सड़कों को कई गलियों को बैरिकेटिंग करके घंटों बंद किया गया जिससे जन जीवन अस्त-व्यस्त हो उठे थे! कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई हमारे बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए मेहमान आ रहे हैं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था की शहर में कर्फ्यू का माहौल है।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को बस्तरवासियों से माफी मांगनी चाहिए। बोधघाट परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों के पुनर्वास की स्पष्ट योजना ग्रामीणों के समक्ष सार्वजनिक किया जाना चाहि। मुरिया दरबार की परंपरा और गरिमा की रक्षा करना चाहिए, ताकि बस्तर के लोगों का विश्वास हमेशा बना रहे।
यह बस्तर की जनता की आवाज़ है, जिसे दबाया नहीं जा सकता। बस्तर केवल एक भू-भाग नहीं, एक जीवंत संस्कृति है और उसे कोई खामोश नहीं कर सकता।