दंतेवाड़ा, 03 जुलाई । बस्तर में लगातार बढ़ रहे फोर्स के दबाव से माओवादी बैकफुट पर है। फोर्स के द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन में कई बड़े कैडर के माओवादी मारे गए है। 21 मई को अबूझमाड़ के किलेकोट के जंगल में हुई मुठभेड़ में माओवादी संगठन का जर्नल सेक्रेट्री बसव राजू सहित 27 माओवादी मारे गए। फोर्स का माओवादियों पर बढ़ता दबाव को राहत शिविरों में रहे रहे लोग बड़ी राहत के रूप में देख रहे हैं। दंतेवाड़ा के कासौली में आज भी 185 परिवार है जो सलवाजुडूम की आग मेें झलसे थे। ये परिवार 2005 में नीराम,बेलनार, पल्लेवाया, डूंगा, ऐकेल, पीडिया कोट जैसे दर्जनों गांव से लोग आकर कासौली में बस गए थे। इन गांव के लोगों को आज भी आस है कि वह अपनी माटी में एक दिन लौटेंगे जरूर। इन गांव के लोगों से जब चर्चा की तो वे कहते है हम अपने माड़ के घरों में वापस जाना चाहतेे है। वहां हमारा सब कुछ है। यहां तो छोटी से झोपड़ी में रहकर गुजर बसर भर बस हो रही है। गांव में एकड़ों जमीन पड़ी, जब से आए है लौट कर नहीं गए है। हमारे खेतों मे कौन हल चला रहा है यह भी नही मालूम। अभी फोर्स जिस तरह से माओवादियों को मार रही है, इससे लग रहा है अब माओवाद समाप्त हो जाएगा और अपने घर लौट पाएगें। यदि माओवाद समाप्त हुआ तो सबसे ज्यादा खुशी राहत शिविरों में रहे लोगों की होगी। फोर्स ने बड़े माओवादी नेता को मारा है। यह खबर टीवी और फोन पर देखी है। हालांकि वसव राजू को कभी नही देखा था। अबूमाड़ के जब अपने गांव में थे तब राजमन मंडावी, श्याम, सपना और फूलमती को ही देखा था। ये बड़े ही क्रू र चेहरे थे। माओवाद समाप्त होगा तो शांति से अपने गांव में रह सकेगें।
सरकार ने सलवा जुडूम के दौरान इनके लिए फ्री में राशन की व्यवस्था की थी। कैंप में करीब 200 राशन कार्ड धारी है। राहत शिविर में रहने वाले ग्रामीण कहते है अपने खेतों में धान की फसल की पैदावार लेते थे। करीब 20 साल से सरकारी राशन से ही जीवन यापन कर रहे हैं। राश्सन दुकान का संचानलन करने वाला गागरू लेकाम बताता है, वह नीराम का रहने वाला है। सलवाजुडूम की दौरान कासौली गांव आया था। यहां आने के बाद वापस नही जा पाया। वापस तो सभी जाना चाहते है नक्स के खौफ के चलते लौट पाना मुश्किल है। यदि मौहौल सही हुआ तो जरूर वापस जाएगें।
नक्सलियों के खौप के चलते गांव से आए थे। यदि नक्सलवाद समाप्त हुआ तो सरकार माड़ क्षेत्र में कब्जा कर लेगी। खनिज संपदा का उसको दाहन करना है। नक्सी समाप्त हो जाएगें अच्छी बात है,लेकिन सवाल तो वही है क्या हमें हमार पूरा जल जंगल पहाड़ मिल पाएगा? सच तो यही है कुछ भी हासिल नहीं होगा। हर जगह खनिज संसाधनों को हड़पा जा रहा है। यहां भी तो वही हो रहा है।