बस्तर की मिट्टी की महक लेकर आई माटी

छत्तीसगढ़ी सिनेमा को नई पहचान देने वाली फिल्म प्रदेश भर मेँ रिलीज

जगदलपुर में पत्रकारों के बीच पहले शो ने जीता दिल – बस्तर की वास्तविकता, दर्द और उम्मीद का संजीव चित्रण

जगदलपुर। बहुप्रतीक्षित छत्तीसगढ़ी फिल्म माटी शुक्रवार को पूरे प्रदेश में रिलीज हुई। बस्तर में लंबे समय से चर्चा का विषय बनी यह फिल्म अपने पहले ही दिन जगदलपुर में विशेष रूप से बस्तर जिला पत्रकार संघ के सदस्यों के लिए प्रदर्शित की गई। स्थानीय बिनाका मॉल स्थित मल्टीप्लेक्स में आयोजित इस शो में बड़ी संख्या में पत्रकार पहुंचे और फिल्म का पहला अनुभव लिया।
फिल्म माटी अपनी कहानी के साथ-साथ बस्तर की असल संस्कृति, घने जंगलों, घाटियों, झरनों और गांवों की प्राकृतिक सुंदरता को पहली बार इतने सजीव और संवेदनशील रूप में बड़े पर्दे पर प्रस्तुत करती है। यह कहानी सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं—बल्कि नक्सलवाद की छाया में जी रहे बस्तरवासियों की पीड़ा, संघर्ष और असली ज़िंदगी को दर्शकों के सामने बिना किसी आडंबर के रखती है।
फिल्म में नक्सलवाद, प्रशासनिक तंत्र, और हिंसा के बीच पनपती एक साधारण लेकिन सच्ची प्रेम कहानी कहानी को और भावुक बनाती है। यह प्रेम कहानी हिंसा और भय के बीच भी उम्मीद और संवेदना की एक नई राह खोलती है।
फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें बस्तर के स्थानीय कलाकारों ने अपनी भूमिका निभाई है,जिससे फिल्म को एक वास्तविक और भरोसेमंद आयाम मिला है। निर्देशक ने इन कलाकारों को सिर्फ अभिनय ही नहीं, बल्कि अपनी कहानी को खुद जीने का अवसर दिया है।
चन्द्रिका फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता और कथाकार सम्पत झा ने कहा कि माटी सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह बस्तर की पहचान और हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। यहाँ की मिट्टी की खुशबू, दर्द और उम्मीद को दुनिया के सामने लाना ही उद्देश्य था।उन्होंने बताया कि फिल्म की शूटिंग के दौरान शुरुआती दिनों में नक्सलवाद के डर से कई स्थानीय लोग शामिल होने में हिचकिचाए, लेकिन बाद में वे खुद इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनकर गर्व महसूस करने लगे। फिल्म में 1000 से अधिक बस्तर के स्थानीय लोगों ने विभिन्न भूमिकाओं में काम किया है।फिल्म के निर्देशक अविनाश प्रसाद, जिन्होंने वर्षों तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम किया ने इस कहानी को बेहद जीवंत निर्देशन दिया है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लोकप्रिय संगीतकार अमित प्रधान ने अपने बैकग्राउंड स्कोर से फिल्म में जान डाल दी है,जबकि मनोज पांडेय के गीत इसे और अधिक भावनात्मक बनाते हैं।फिल्म की संपूर्ण शूटिंग बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों,जंगलों, पहाड़ों, नदी-घाटियों और दूरस्थ गांवों में की गई है। इन प्राकृतिक दृश्यों ने फिल्म को सिर्फ वास्तविक ही नहीं, बल्कि दृश्यात्मक रूप से भी बेहद आकर्षक बनाया है।
मुख्य कलाकारों में महेन्द्र ठाकुर (भीमा), भूमिका साहा(उर्मिला) भूमिका निषाद, राजेश मोहंती, आशुतोष तिवारी, दीपक नाथन, संतोष दानी, निर्मल सिंह राजपूत, जितेन्द्र ठाकुर, नीलिमा और लावण्या मानिकपुरी, पूर्णिमा सरोज, श्रीधर राव, बादशाह खान सहित कई स्थानीय कलाकारों ने दमदार अभिनय किया है।

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