जगदलपुर, 10 मार्च . छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग सबसे पिछड़ा माना जाता है. आज भी यहां कई इलाके ऐसे हैं जहां जागरुकता की कमी है. खासकर माहवारी यानी मासिक धर्म के बारे में बात करने से भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं घबराती हैं. जागरुकता का सबसे बड़ा अभाव इन इलाकों में देखा जाता है. कई बार देखा गया है कि महिलाओं में होने वाली इस प्रक्रिया के दौरान हाइजीन का ख्याल नहीं रखा जाता.जिससे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा होती है.ऐसी समस्याएं महिलाओं को ना हो इसके लिए बस्तर में पैड वुमेन ने मोर्चा संभाला हुआ है.
महिलाओं को कर रही हैं जागरुक : ये महिला न सिर्फ महिलाओं को पीरिएड्स के बारे में जागरूक कर रही है बल्कि फ्री में उन्हें सेनेटरी नैपकिन भी दे रही हैं. इस महिला का नाम करमजीत कौर है. जिन्होंने बस्तर में एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की है. करमजीत कौर एक समाजसेवी और जागरूकता अभियान की नेत्री हैं. पिछले 9 वर्षों से उन्होंने बस्तर के ग्रामीण और शहरी इलाकों में माहवारी पर जागरूकता फैलाने का काम किया हैं. उनकी संस्था ‘दी बस्तर केयर फाउंडेशन’ के माध्यम से वह महिलाओं को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन देती हैं. इसी के साथ माहवरी से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के विषय में भी जानकारी देती हैं.
करमजीत कौर के मुताबिक बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में जब उन्होने दौरा किया तो पता चला कि जो महिलाएं और बालिकाएं हैं वो लगातार संक्रमण का शिकार हो रही हैं. जब इसकी तह तक गए तो जानकारी मिली कि माहवारी के दौरान महिलाएं और बालिकाएं घर के गंदे फटे पुराने कपड़ो का इस्तेमाल करती हैं. कुछ जगह पत्तों, राख और मिट्टी का भी इस्तेमाल होता है. उसकी वजह से संक्रमण का शिकार हो रही है. इसके साथ ही बस्तर में सर्वाइकल कैंसर काफी तेजी से फैलता जा रहा है. जिसे गंभीर समस्या के रूप में देखते लगे.
करमजीत के मुताबिक स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियां को जब पीरियड्स आता है तो उनके कपड़े गंदे हो जाते थे.इस कारण वो स्कूल जाना ही छोड़ देती थी. अंदरूनी क्षेत्रों के हर गांव में 10-12 लड़कियां ऐसी थी जिन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया. जिसे देखते हुए निश्चित तौर पर यह गंभीर विषय था कि बस्तर की बेटी यदि पढ़ेगी नहीं तो आगे कैसे बढ़ेगी. इसके लिए एक एनजीओ दी बस्तर केयर फाउंडेशन की स्थापना की गई. साथ ही 2016 में पैड बैंक की स्थापना हुई. जिसके तहत महिलाओं को फ्री में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवाते हैं. इसके साथ ही बस्तर के हाट बाजारों में जाकर अपनी बातों को रखा. अभी तक बस्तर के 250 गांवों में करीब 50 हजार से अधिक सेनेटरी नैपकिन बांटा है.
बस्तर में माहवारी को छूत की बीमारी के रूप में जाना जाता है. पीरिएड्स की शुरुआत होते ही लड़कियां किचन में नहीं घुस सकती. पानी नहीं छू सकती, अनाज नहीं छू सकती. महिलाओं और लड़कियों को घर के कोने में जगह दी जाती है. बस्तर में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. स्कूल की बचियां भी समझने लगी. धीरे-धीरे बस्तर में बदलाव देखने को मिल रहा है. इस मिशन के बाद बस्तर में काफी इम्प्रूवमेंट हुआ. व्यक्तिगत आंकड़ों के अनुसार पहले केवल 35 प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती थी. अब यह आंकड़ा वर्तमान में 50 प्रतिशत से अधिक है-करमजीत कौर, समाजसेवी एवं पैड वूमेन
करमजीत को मिल चुका है सम्मान : करमजीत कौर की मेहनत और नारी शक्ति के प्रति उनके योगदान को मान्यता दी गई है. उन्हें दिल्ली में आयोजित ‘नेशनल वूमेन एक्सीलेंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. इसके अलावा कई अन्य सरकारी एवं निजी संस्थाओं ने भी उनके काम को सराहा है. बस्तर में उनके कार्य को लेकर उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जाता है. उनकी टीम की सराहना की जाती है. करमजीत कौर और उनकी टीम ने बस्तर के ग्रामीण इलाकों में माहवारी से जुड़ी जागरूकता को फैलाकर एक बड़ा बदलाव लाया है. अब बस्तर जिले में महिलाएं और युवतियां सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करने में संकोच नहीं करतीं. इससे जुड़ी बीमारियों की संख्या भी कम हो रही है. करमजीत कौर और उनकी टीम का यह अभियान न केवल बस्तर बल्कि पूरे देश में एक मिसाल के रूप में स्थापित हो सकता है.