मुहर्रम की दसवीं तारीख पर ख़ादिम राजेंद्र भूरा से विशेष भेटवार्ता

बचपन से सेवा पथ पर – बाबा जी की कृपा से मातृत्व का वरदान

राजेंद्र भूरा, जो पिछले 50 वर्षों से मुहर्रम के अवसर पर स्थानीय आयोजन समिति के प्रमुख सेवक (ख़ादिम) के रूप में कार्यरत हैं, ने बताया:
“मैंने मात्र 6 साल की उम्र में चिराग-बत्ती के समय अहमदाबाद के बाबा जी को सवार होते देखा था।”
उसी क्षण से मेरे जीवन की दिशा बदल गई। बाबा जी की छांव में रहकर मैंने सेवा का जो मार्ग अपनाया, वह आज भी जारी है।

“पिछले 50 वर्षों से अधिक समय से मैं लगातार लोगों की सेवा कर रहा हूँ।”
बाबा जी की कृपा से न जाने कितनी माताओं की सूनी गोदें भरी हैं। जिनके जीवन में वर्षों से संतान का सुख नहीं था, उन्हें संतान प्राप्त हुई – ये सब उनकी श्रद्धा और बाबा जी की कृपा का ही परिणाम है।

यह सेवा मेरे लिए पूर्ण आस्था और समर्पण का मार्ग है।
हर वर्ष, मुहर्रम, चिराग, और अन्य धार्मिक अवसरों पर मैं निस्वार्थ भाव से सेवा में लगा रहता हूँ। मुझे संतोष और आनंद वहीं मिलता है जहाँ किसी के जीवन में उम्मीद की एक लौ जलती है।

“मुहर्रम केवल मातम का पर्व नहीं है, यह इंसानियत, बलिदान और सच्चाई के लिए खड़े होने का प्रतीक है। इमाम हुसैन ने अन्याय के खिलाफ डटकर खड़े होकर जो मिसाल पेश की, वह आज भी हर इंसान के लिए प्रेरणा है।”

भेंट के मुख्य बिंदु:

इस बार ताजियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और नई पीढ़ी की भागीदारी विशेष रूप से सराहनीय रही।

ख़ादिम राजेंद्र भूरा ने सभी समुदायों से आपसी भाईचारे और सौहार्द बनाए रखने की अपील की।

भविष्य की योजना पर उन्होंने कहा:
“हम आने वाले वर्षों में मुहर्रम के दौरान अधिक सामुदायिक सहभागिता और जन-जागरूकता कार्यक्रम जोड़ना चाहते हैं, जिससे युवा पीढ़ी इस परंपरा को गहराई से

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