जगदलपुर, 15 नवम्बर । बस्तर की पहली महिला शिक्षिका बी. माधवम्मा नायडू का जीवन शिक्षण और नारी सशक्तिकरण का प्रेरणास्रोत है। मद्रास के निकट पागलमबेडू गांव में जन्मी माधवम्मा नायडू 19वीं शताब्दी के अंत में अपने भाई बी. मुनीस्वामी नायडू और भाभी महालक्ष्मी नायडू के साथ नागपुर की ओर निकलीं। रास्ते में वे परलकोट जमींदारी पहुंचे, जहाँ उन्होंने कुछ समय के लिए रुकने का निर्णय लिया। यहीं से उनके जीवन का नया अध्याय आरंभ हुआ।
श्री नागेश्वर नायडू ने बताया कि परलकोट में उन्होंने बालिकाओं को हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू की शिक्षा देना शुरू किया। उस दौर में किसी महिला का शिक्षक बनना बेहद असामान्य था, फिर भी माधवम्मा ने समाज की सीमाओं को तोड़कर शिक्षा की अलख जगाई। बाद में उन्होंने भोपालपटनम में भी लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य जारी रखा।
उनकी ख्याति जब बस्तर के तत्कालीन महाराज रुद्र प्रताप देव तक पहुँची, तो उन्होंने माधवम्मा नायडू को राजमहल में महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी को शिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया। वर्ष 1916 में वे बस्तर पहुँचीं और महारानी को हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी की शिक्षा देने लगीं।
महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने अपनी शादी के समय, 1926 में, माधवम्मा नायडू की इच्छा अनुसार भैरमगढ़ स्थित एक भवन में कन्या शाला की स्थापना की। यह विद्यालय आगे चलकर “पुत्री शाला” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस स्कूल की प्रथम छात्राओं में श्रीमती सुनामणि रथ, श्रीमती चंद्रमणि रथ, श्रीमती परागा शुक्ला, राजरानी बाई और सुनामणी पांडे प्रमुख थीं।
समय के साथ यह कन्या शाला बस्तर की महिलाओं में शिक्षा का दीपक बन गई। इस संस्था ने न केवल समाज में नारी शिक्षा की नींव रखी बल्कि बस्तर की महिलाओं को उच्च शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया। आज बस्तर की महिलाएं शासन, प्रशासन, शिक्षा और सामाजिक सेवा के हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं और पूरे देश का गौरव बन चुकी हैं।