जगदलपुर 26 मार्च . बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के गुदमा गांव में आदिवासियों की वर्षों पुरानी जात्रा के आयोजन से पहले पारद(शिकार) की परंपरा निभाई गई। ग्रामीणों के लिए उनका यह अवस्मरणीय क्षण करीब दो दशक बाद लौटा है। कल तक जंगल में नक्सलियों का सख्त पहरा होने से परम्परा आगे नहीं बढ़ पा रही थी, लेकिन अब हालात जैसे सुधरते जा रहे है परंपराएं फिर से जीवित हो रही है।पारद के बाद” उचूल ” की रस्म भी निभाई गई जिसमे तंत्र सिद्धि के जरिए देव विग्रहों को आमंत्रित किया गया। फिर देव खेलनी के साथ गुदमा में मालवी माता का पूजा कर सीतला माता की विधिवत ग्राम वासियो ने पूजा अर्चना कर गुदमा में वार्षिक जात्रा मनाया गया। नक्सलगढ़ में दो दशक बाद आदिवासियों के परम्परागत उत्सवों में अब फिर से रंग में सरोबार भरने लगे है।यंहा जात्रा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े धूम धाम के साथ मनाया गया है।इस जात्रा में 10 से 20 गांव के हजारों लोग जुटे।इस जात्रा की शुरुआत से पहले लट को माता यंहा एकत्रित किया जाता है।जिसकी आदिवासी पूजा भी करते है।लट इस जात्रा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है जिसको सीतला माता के चरणों मे रखकर पराम्परागत प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है।
नवनिर्वाचित गुदमा की सरपंच नीता शाह ने बताया कि गुदमा की जात्रा हर वर्ष बड़ी हर्ष के साथ गांव वालों के परिधान में विलय होकर मनाया जाता है।इस जात्रा को मनाने की कई रहस्य है।जैसे इस जात्रा को गांव में मनाने से गांव में आने वाली जितनी भी विपत्ति है वो टल जाती है।ताकि गांव में ख़ुशवाली एवम सुख समृद्धि की प्राप्ति हो।आदिवासियों की भोगाम डोल इस परम्परा में विशेष तौर पर सम्मिलित होती है जो आदिवासियों का प्रतीक माना जाता है।
गुदमा में ख़ुशवाली एवम सुख समृद्धि के लिए मनाई जाती है ये जात्रा
