सुकमा। इस बार की दिवाली सिर्फ रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि उस जज़्बे का उत्सव है, जिसने दशकों से देश के दिल में जकड़े अंधेरे को मिटाने की ठान ली है। बस्तर की धरती पर अब सिर्फ बारूद की गंध नहीं, बल्कि शांति के फूल महकने लगे हैं। नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक जंग में देश नई सुबह की ओर बढ़ चला है।पिछले कुछ महीनों में जो तस्वीरें सामने आईं—गढ़चिरौली, सुकमा और अब जगदलपुर में सामूहिक आत्मसमर्पणों की ऐतिहासिक घटनाएँ—वे बताती हैं कि यह संघर्ष अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। यह जीत किसी एक सरकार या एजेंसी की नहीं, बल्कि उन अनगिनत वीरों की है जिन्होंने जंगलों और पहाड़ियों में अपने प्राणों की आहुति दी ताकि आम नागरिक शांति से साँस ले सकें।भारत सरकार और राज्य सरकार की ठोस नीतियाँ, सुरक्षा बलों का अडिग साहस और जनता का अटूट विश्वास—इन तीनों ने मिलकर नक्सलवाद की जड़ों को हिला दिया है। आज बस्तर की सड़कों पर जो रौशनी है, वह सिर्फ बिजली के बल्बों की नहीं, बल्कि उम्मीद और विश्वास की चमक है।
इसी मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फारूख अली ने देशवासियों से भावपूर्ण अपील की
“आओ, इस दिवाली अपने घर-आँगन में खुशियों के दीप जलाने के साथ-साथ एक दीया उन अमर शहीदों के नाम भी जलाएँ, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा और नक्सलवाद के अंत के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।”यह अपील सिर्फ एक संदेश नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल की आवाज़ बन चुकी है। इस बार जब सितारों सी जगमग रात में दीये झिलमिलाएँगे, तब हर लौ में एक शहीद का नाम, हर रोशनी में एक कहानी और हर मुस्कान में उनकी कुर्बानी की याद होगी।क्योंकि इस दिवाली… बस्तर से पूरे भारत तक, जलेंगे सिर्फ दीये नहीं—जल उठेगी शांति की नई उम्मीद।