सुकमा, 16 अक्टूबर । देश के भीतर नक्सलवाद के पतन को लेकर इस बार दिवाली का उत्साह कुछ अलग है। नक्सल विरोधी समाजसेवी डॉ. फारूख अली का कहना है—“यह वही दिवाली है जिसका इंतजार देशवासी दशकों से कर रहे थे। रावण रूपी नक्सलवाद की विचारधारा अब अपने अंतिम दौर में है और शांति का सूरज बस्तर की पहाड़ियों पर फिर से चमकने लगा है।”
डॉ. अली ने अपने प्रेस बयान में कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ़ लड़ी गई इस लंबी जंग में अनगिनत वीर जवानों, जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनका बलिदान ही उस नींव की तरह है जिस पर आज शांति का महल खड़ा हुआ है। “जिन सपूतों ने जंगलों में अपने जीवन को जोखिम में डालकर देश की एकता को बचाया, वह इतिहास के अमर पन्नों में दर्ज रहेंगे।
देश में पहली बार बस्तर से दिल्ली तक शांति की परछाई महसूस की जा रही है। सुराखों भरी सड़कों पर अब बच्चों की हंसी गूंजती है, ग्रामीण बाजारों में अब हथियारों की नहीं बल्कि त्योहारी सामानों की मांग बढ़ी है। सुरक्षा बलों की अथक मेहनत और सरकार की दृढ़ नीति ने देश के जंगलों को हिंसा से मुक्ति दिलाई है।
डॉ. फारूख अली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय तथा राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा का आभार प्रकट करते हुए कहा कि नक्सलवाद के खात्मे में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही है। उन्होंने साफ कहा—“यह विजय केवल सरकार या सेना की नहीं, बल्कि उन शहीद आत्माओं की भी है जिन्होंने देश में अमन के दीप जलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।”
डॉ. अली ने अपील की कि इस दिवाली हर परिवार एक दीया उन शहीदों की स्मृति में जलाए जिन्होंने मृत्यु को मुस्कराते हुए स्वीकार किया ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भय रहित जीवन जी सकें। उन्होंने कहा, “असली दिवाली वहीं है जहाँ से डर और हिंसा का अंधकार मिटे। आज वह घड़ी आ चुकी है।”
बस्तर से उठी यह शांति की लहर अब पूरे देश में फैल रही है। गांवों में पहली बार लोग निर्भीक होकर दीपोत्सव की तैयारियाँ कर रहे हैं। यह वही क्षण है जब देश कह सकता है—नक्सलवाद का रावण जल चुका है, और भारत में असली दिवाली मनाई जा रही है।