क्या आर टी ई धाराशाही हो गई
पालकों को बुलाकल निजी स्कूल कह रहें है अपने बच्चों को अन्यत्र पढ़ाएं
जगदलपुर गरीब बच्चों को मंहगे निजी स्कूल में पढ़ने का सपना दिखाने वाली योजना आरटीई यानि राईट्स टू एजुकेशन लगता है धाराशाही हो रही है। कुछ निजी स्कूलों से आरटीआई के छात्रों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। निजी स्कूलों के मुताबिक इन बच्चों का फीस लम्बे समय से सरकार ने नहीं दी है। पिछले हफ्ते शहर में मौजूद निर्मल विद्यालय और ज्ञानोदय स्कूल आड़ावाल में बच्चों के पालको ने इस आशय की जानकारी सार्वजनिक करने से मामले ले मीडिया में बड़ा तूल पकड़ लिया । पालकों का कहना था हमारे बच्चे लम्बे समय से इस आरटीई के तहत स्कूल में पढ़ रहे थे । अब स्कूल प्रबंधन इन्हें पढ़ाने के एवज में फीस मांग रही है जिसे वे देने में असमर्थ हैं। प्राईवेट स्कूल एसोशिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष नीलोत्पल दत्ता कहते हैं कि अल्पसंख्यक स्कूलों का वह पोर्टल शासन ने ही बंद कर दिया जिससे सहारे वे प्रत्येक सत्र के अंत में प्रतिपूर्ति राशि या बच्चों की फीस सरकार की तरफ से मिलती थी। ऐसे में पोर्टल से ये स्कूल मांग नहीं कर पा रहें है। और न ही आरटीई में शामिल होने को इच्छुक स्कूल अपना रजिस्टर कर पा रहें है।
यही वजह है जो पहले से इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की फीस नहीं मिल सकी है जिसके कारण ये असंतोष उपजा है। विद्याज्योति के प्राचार्य फादर एंटनी कहते है हमारे स्कूल में ऐसे 300 बच्चे है जिनकी फीस यानि प्रतिपूर्ति राशि सरकार से नहीं मिली है।
नीलोत्पल दत्ता कहते है सात वर्षों से ऐसे स्कूल हैं जिन्हें फीस के नाम पर कुछ नहीं मिला है और वे बच्चों को अब तक पढ़ाते आ रहें है। अकेले बस्तर में 720 बच्चे हैं इससे प्रभावित हो रहें है।
कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार की गलतियों का खामियाजा बस्तर में 720 बच्चे उठाएंगे। जाहिर है ये किसी न किसी निजी स्कूल में पढ़ रहें है और इन बच्चों को बाहर का रास्ता दिखया जाएगा। एक पालक का कहना है मेरा बेटा आरटीई के तहत 7 साल पढ़ाई किया अब स्कूल वाले फीस की मांग कर रहें है कहते है फीस नहीं तो बच्चे को कही और ले जाएं।
और इसीलिए नो फीस नो एडमीशन के तर्ज पर पालकों को बुलाकर फीस की मांग की जा रही है।
छत्तीसगढ़ सरकार प्रतिछात्र इतनी रकम देती थी
निलोत्पल दत्ता का बताते हैं कि सन 2011 से प्रइमरी सेक्शन के लिए प्रति छात्र 7000 रूपए , मीडिल सेक्शन के लिए 10500 प्रतिछात्र और हायर सेकेण्ड्री के लिए प्रति छात्र 15000 रूपए प्रति वर्ष निर्धारित है
अब इस पूरी कहानी के पीछे सरकार की मंशा को लेकर बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों अल्पसंख्यक स्कूल का नाम पोर्टल से हटा दिया । नीलोत्पल दत्ता कहते हैं कि पहले सरकार ने आप्शन दिया था आरटीई में रहे या हट जाएं । मगर अब सभी अल्पसंख्यक स्कूलों का हटा दिया गया । इससे नुकसान यह हुआ कि ऐसे अल्पसंख्यक स्कूल जो अपना आरटीई का लाभ लेना चाहते है वे भी दर्ज नहीं कर पा रहें हैं। और नही पूर्व में दर्ज विद्यार्थियों की फीस की मांग पूरी हो पा रही है। एक समय में यह सभी स्कूलों के लिए लागू किया गया था । बाद में अल्पसंख्यक स्कूलों का यह सुविधा दी गई कि वे अपना नाम आरटीई से हटा सकते हैं। वे हट तो गए मगर जिन बच्चों का रजिस्ट्रेशन आरटीई में हुआ है उनकी फीस नहीं मिल पा रही है क्योंकि आरटी ई पोर्टल से वे हट गए है।
आरटीई पोर्टल में अपना नाम जोड़ना चाहते है कुछ अल्प संख्यक स्कूल
कुछ अल्प संख्यक स्कूल ऐसे भी हैं जो आरटीई पोर्टल में अपना नाम जोड़ना चाहते है। मगर वे नहीं जुड़ पा रहें हैं क्योंकि शासन ने सारे अल्पसंख्यक स्कूलों का नाम हटा दिया है।
अपना नाम आरटीई में देना चाहते है मगर शासन द्वारा हटा दिए जाने के करण वे इस सुविधा का लाभ नही ले पा रहें हैं। इधर शिक्षा अधिकारी बलिराम बघेल यह स्वीकार कर रहें हैं कि पांच वर्षों से इन स्कूलों को प्रतिपूर्ति राशि नहीं मिली है । साथ में यह भी वे कहते हैं कि अगर इन बच्चों से कोई शुल्क लिया गया है तो वे उन्हें वापस पालकों को वापस दिलाएंगे।
अब देखना यह है कि स्कूल और पालक आखिर कब अपना पैसा ले सकते हैं शायद 2047 तक.