करीम
आज से लगभग 140 वर्ष पूर्व 4 मई 1884 को एक ऐसे महान व्यक्ति का जन्म हुआ जिसका दुसरा मिल पाना असम्भव है। आप गरीब परवर भी थे और दिल के एतेबार से बहुत सखी भी थे। लीडर कमांडर, मुकर्रर, शायर, पेशे से बहुत बड़े वकील था गरीबों, बेसहारों और किसानों के मसीहा थे जिन्हें दुनिया आज बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस के नाम से जानती है। उनके व्यक्तित्व के बारे में जितना लिखा जाए कम है। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे जहाँ एक ओर वे उच्च शिक्षित और अपने समय के वकील थे, वहीं दूसरी ओर वे एक नेता, लीडर भी थे।
बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस ब्रिटिश भारत के बिहार प्रात के पहले प्रधान मंत्री थे। उपने करियर के दौरान, प्रांतीय सरकारों के प्रमुखों को प्रधान मंत्री कहा जाता था। उन्होंने 1937 में पहले लोकतांत्रिक चुनावों के दौरान तीन महीने तक राज्य पर शासन किया। बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस एक कानूनी विशेषज्ञ एक अच्छे लेखक और कवि होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई। ये भारत के बटवारे के सख्त खिलाफ थे वे आपसी भाईचार की बात करते थे। भारत की साझी गंगा जमनी सभ्यता विरासत को बचाने के लिए वे हमेशा प्रयत्नशील रहे। हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते थे इसलिए आपने “मेल मिलाप एसोसिएशन बनाई। आप एक महान देशभक्त थे। इस संघ को बनाकर आपने समाज में समरसता, साझी विरासत, हिंदू मुस्लिम एकता का संदेश दिया, जिसकी आज भारत के समाज और समाज को सख्त जरूरत है। आप एक महान देशभक्त थे। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उर्दू को राजभाषा का दर्जा दिलाया जो आज बिहार और कई अन्य प्रांतों की दूसरी भाषा है, बल्कि यूँ कहे कि भारत की मूल भाषा है। जब स्वतंत्रता के बाद इसका दर्जा खत्म हुआ तो उनकी विरासत को बचाने और बढ़ाने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री गुलाम सरवर, अब्दुल कय्यूम अंसारी, पंडित देवनारायण जी और जय बहादुर सिंह जी ने बहुत काम किया। उन सभी ने उर्दू को राजभाषा बनाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने उर्दू के लिए एक आदोलन शुरु किया और इसके लिए गाँव-गाँव और गली-गली गए वे अपने समर्थकों के साथ भूख हड़ताल पर बैठे। इन मे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक देवनारायण पांडेय और जय बहादुर सिंह जी ने उर्दू रक्षा बल के स्वयंसेवकों के रूप में यूपी में उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा के रूप में दर्जा देने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए और गुलाम सरवर जी ने तो उर्दू के लिए शहादत का दर्जा भी पाया। इन सबके प्रयासों से आखिरकार उर्दू को बिहार में और कई सोबों में दूसरी भाषा का दर्जा मिला। ये और बात है कि आज ये भारत की बेटी सरकारी के तबज्जुडी का शिकार है। आज हम सभी को उनके नक्शेकदम पर चलना चाहिए और समाज में आपस दारी और एकता के लिए काम करने की सख्त जरूरत है और साथ साथ उर्दू को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए। इसके प्रचार-प्रसार के लिए उर्दू अखबार और पत्रिकाएं खरीद कर पढ़िए और उर्दू के विकास और प्रचार-प्रसार के आंदोलन का हिस्सा बनिए, लेकिन दुख की बात यह है कि आम लोगों की तो बात ही क्या, उर्दू दा भी इस तरफ ध्यान नही दे रहे है।