जगदलपुर , 13 अक्टूबर. ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के अंतर्गत मुख्य आकर्षण माता मावली परघाव शनिवार को पूरे विधि विधान व उत्साह से पूरा हुआ। दंतेवाड़ा से आई मावली माता के छत्र व डोली के स्वागत के लिए शनिवार शाम सड़कों पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। गीदम रोड स्थित जिया डेरा तक मांझी, मुखिया देवी के स्वागत के लिए गए और उन्हें लेकर दंतेश्वरी मंदिर लेकर लौटे। इस दौरान रास्ते भर माता के जयकारे लगते रहे। कुटरू बाड़ा के पास बने स्वागत स्थल पर पूर्व स्तर राज परिवार के लोगों व माता के पुजारियों ने माता की डोली को कंधे पर उठाया।
दंतेश्वरी मंदिर के लिए निकली इस शोभायात्रा के दौरान आगे-आगे आंगा देव झूमते रहे। यात्रा के आगे लगातार आतिशबाजी होती रही। इस दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए काफी संख्या में सुरक्षाकर्मी मौजूद थे। परंपरागत पहनावे के साथ मुंडा बाजा वादक, शहनाई की धुन के साथ डोली लेकर राजमहल परिसर पहुंचे। यहां सिंह ड्योढ़ी तक लोगों ने फूलों की वर्षा कर मावली माता स्वागत किया। माता के छत्र को देखने व प्रणाम करने के लिए लोग उमड़ पड़े। इस दौरान दंतेश्वरी माता के छत्र को चंदन का लेप लगाकर व नए वस्त्र से ओढ़ाकर फूलों से ढंक दिया गया। छत्र के स्वागत के लिए पूर्व बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव के साथ ही बस्तर दशहरा समिति के पदाधिकारी व अधिकारी मौजूद थे।
मान्यता के अनुसार 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है। बस्तर के महाराजा रुद प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है और अब बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव इस रस्म की अदायगी करते हैं। दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में माता की डोली और छत्र को शामिल किया जाता है।
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