मल्लोजुल्ला वेणुगोपाल उर्फ भूपति ने गढ़चिरौली पुलिस के समक्ष किया आत्मसमर्पण

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जगदलपुर , 15 अक्टूबर. अभय उर्फ सोनू उर्फ भूपति उर्फ मल्लोजुल्ला वेणुगोपाल ने गढ़चिरौली पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. अभय, नक्सल संगठन की लड़ाई को ऐसे तर्क-वितर्क देकर जनता के सामने प्रस्तुत करता कि हजारों किमी दूर बैठे नौजवान के मन में नक्सल संगठन के लिए एक सहानुभूति जागती थी. उसे लगता कि नक्सली ही आदिवासियों के न्याय के लिए क्रांति की असली लड़ाई लड़ रहे हैं.
वेणुगोपाल नक्सलियों का थिंक टैंक याने सबसे बड़े विचारकों में से एक है. संगठन में वह 1970 के दशक में आया उसने अपने जीवन के 50 वर्ष नक्सलियों की रणनीति बनाई. नक्सलियों द्वारा अपना प्रोपोगेंडा फैलाने आदिवासियों के नामपर साधना नाम का उपन्यास लिखा गया था. उसने रागों और बॉर्डर नाम के उपन्यास आदिवासियों की संस्कृति और जीवन पर लिखे. ये इस तरह लिखे गए थे कि इनमें सिर्फ नक्सलियों को आदिवासियों का हितैषी समझाया गया था. इन उपन्यासों के माध्यम से उसने शहरी क्षेत्रों और विश्वविद्यालयों के छात्रों में नक्सलियों के लिए सहानभूति खड़ी की.
मई 2025 में नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी मेंबर नम्बाला केशव उर्फ बसवराजु के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद वेणुगोपाल को योग्यता के आधार पर नक्सलियों का महासचिव बनाया जाना था. लेकिन वेणुगोपाल अमित शाह के नक्सलमुक्त छत्तीसगढ़ अभियान के तहत सुरक्षाबल के लगातार नक्सलियों पर बढ़ते दबाव और एनकाउंटर में लगातार मारे जा रहे नक्सलियों के चलते आत्मसमर्पण के पक्ष में थे. बसवराजू के जिंदा रहते हुए उन्होंने बसवराजु से भी आत्मसमर्पण को लेकर बात की थी.
पांच महीने पहले वेणुगोपाल की पत्नी के सरेंडर के बाद से माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में यह चर्चा शुरू हो गई थी कि वेणुगोपाल खुद भी आत्मसमर्पण कर सकते है. इसके चलते वेणुगोपाल उर्फ सोनू की जान को उन्हीं के साथियों से जान का खतरा हो गया था. बसवराजु के मरने के बाद गणपति का स्वास्थ्य कारणों से महासचिव नहीं बनना तय था. इसके बाद संगठन में सबसे सीनियर नेता वेणुगोपाल ही थे लेकिन पार्टी ने उनसे जूनियर देवजी को महासचिव बनाया. बताया जाता है कि शहरी क्षेत्रों में मौजूद नक्सलियों के पोलित ब्यूरो और जंगल में मौजूद पोलित ब्यूरो ने आत्मसमर्पण के तरफ झुकने की वजह से वेणुगोपाल को महासचिव नहीं बनाया. वहींं, उनकी हत्या भी की जा सकती थी लेकिन वेणुगोपाल पिछले कुछ महीनों से अपनी टीम के साथ नक्सलियों के अन्य दस्ते से अलग-थलग रह रहे थे.

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