जगदलपुर, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज मुरिया दरबार में आदिवासी ग्रामीण प्रतिनिधियों से संवाद कर और लालबाग में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए बड़े विकास व्याापारिक वादा दिए और नक्सलवाद को समाप्त करने की समय-सीमा दोहराई.उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य है कि 31 मार्च 2026 तक बस्तर नक्सल मुक्त हो और विकास की लड़ाई में पीछे रह गए इलाके अब आगे बढ़ेंगे.शाह ने मुरिया दरबार में आदिवासी जनप्रतिनिधियों से मुलाकात की और वहीं से स्वदेशी मेला की ओर रवाना हुए.अपने संबोधन में उन्होंने ग्राम-स्तर पर विकास की कई कवायदों का जिक्र किया हर गांव में बिजली पहुँचाने, स्कूल-खोलने, बैंक सेवाओं का विस्तार और बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करने के सरकारीय इरादे पर बल दिया.उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि बस्तर के बच्चे कलेक्टर और डॉक्टर बनें और क्षेत्र के विकास के लिये केंद्र व राज्य एकजुट हैं.केंद्रीय मंत्री ने घोषणा की कि प्रशासन ने बस्तर के आंतरिक इलाकों को शहर से जोड़ने वाली बस सेवा का शुभारम्भ भी किया उन्होंने बसों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया और कहा कि इस सेवा से करीब 250 गांव जुड़ेंगे, जिससे लोगों को शहरी सुविधाएँ और बाजार आसान पहुँचेंगे.इस प्रकार के कदमों को शाह ने नक्सलवाद के जनाधार को तोड़ने वाली योजनाओं का हिस्सा बताया और ग्रामीण समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ने का आग्रह किया.सभा में अमित शाह ने बार बार इस नारा को दोहराया कि हम हर एक गांव को नक्सल-मुक्त करेंगे और 31 मार्च 2026 की समय-सीमा पर सरकार की प्रतिबद्धता दोहरायी.उन्होंने कहा कि नक्सलवाद विकास की लड़ाई के कारण उपजा मुद्दा है और विकास पहुँचाकर ही अंत किया जा सकता है.
बिजली, पेयजल, सड़कें, हर घर शौचालय, स्वास्थ्य बीमा और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे उपायों का जिक्र किया गया.अमित शाह ने ग्रामीणों से अपील की कि जो लोग नक्सल विचारधारा से जुड़े हैं उन्हें समझाकर मुख्यधारा में लौटाने की कोशिश की जाए शांति व पुनर्वास के रास्तों को अपनाने का अनुरोध किया गया. उनके भाषण और कार्यक्रमों का स्वर विकास-केंद्रित और सुरक्षा-एवं कल्याण मिश्रित रहा, जिसका उद्देश्य स्थानीय आदिवासी समाज के साथ सांस्कृतिक मेलजोल बनाए रखना और साथ ही सुरक्षा चुनौतियों का हल निकालना बताया गया.सांस्कृतिक व प्रशासनिक पहलू मुरिया दरबार की परंपरा में केंद्रीय गृहमंत्री का शामिल होना और दंतेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना, प्रशासन व राजनैतिक नेतृत्व द्वारा ऐसे आयोजन को ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक माना जा रहा है.