लाल सलाम का दामन छोड़ मुख्यधारा में लौटे अमित और अरुणा

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो हिंसा से मोहब्बत की ओर, बंदूक से जीवन की ओर ले जाती है। यह कहानी है अमित बारसा और अरुणा की, जिन्होंने बंदूक छोड़कर प्रेम और शांति की राह चुनी है। कभी डेढ़ करोड़ के इनामी (पोलित ब्यूरो सदस्य) नक्सली नेता वेणुगोपाल का सुरक्षा गार्ड रहा अमित अब कहता है “अब सिर्फ ज़िंदा रहना है, खुलकर… हथियार के साए में नहीं।”
मित और अरुणा दोनों ही लंबे समय से नक्सली संगठन से जुड़े थे। अमित सुरक्षा गार्ड में था, वहीं अरुणा सप्लाई यूनिट की सदस्य थी। संगठन के भीतर बेहद सख्त अनुशासन और सीमित संवाद के बीच, अमित को अरुणा से एकतरफा प्रेम हो गया। दो महीने तक वह प्यार के जवाब का इंतज़ार करता रहा। फिर अरुणा की ओर से जवाब मिला ये रिश्ता मंजूर है। इसके बाद जंगलों में इशारों की एक नई भाषा शुरू हो गई। लेकिन ये प्यार आसान नहीं था। नक्सली संगठन के कठोर नियमों के अनुसार, शादी से पहले दोनों को नसबंदी करवानी पड़ी।

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