नारायणपुर। कभी नक्सलवाद के कारण बाहरी दुनिया से कटा रहा अबूझमाड़ अब अपने प्राकृतिक रहस्यों को धीरे-धीरे उजागर करने लगा है। आज रविवार को बालेबेड़ा से नारायणपुर लौटते समय गारपा और बालेबेड़ा के मध्य स्थित मुस्परसी गांव क्षेत्र में घनघोर जंगल के भीतर नीलगाय (ब्लू बुल) का एक झुंड विचरण करता हुआ देखा गया।
इस झुंड में वयस्क नर-मादा के साथ कुछ युवा और छोटे बच्चे भी शामिल थे। जंगल के भीतर खुले इलाके में नीलगायों की यह सहज और निर्भीक मौजूदगी इस बात का संकेत है कि क्षेत्र में वन्यजीवों के लिए अनुकूल वातावरण दोबारा बन रहा है। सामान्यतः नीलगाय की प्रजाति राजस्थान और मध्य प्रदेश में अधिक पाई जाती है, ऐसे में अबूझमाड़ के दुर्गम वन क्षेत्र में इनका दिखाई देना वन्यजीव संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार नीलगाय सूखे व पर्णपाती वनों में रहना पसंद करती है। इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि नक्सल प्रभाव में कमी आने के साथ ही अबूझमाड़ के जंगलों में जैव विविधता पुनः फल-फूल रही है। ग्रामीण अंचलों में नीलगाय को लीलीगाय अथवा घड़रोज के नाम से भी जाना जाता है।
गौरतलब है कि नारायणपुर जिले का यह अबूझमाड़ क्षेत्र छत्तीसगढ़ के वन मंत्री केदार कश्यप का विधानसभा क्षेत्र भी है। ऐसे में इस इलाके में दुर्लभ वन्यजीवों की मौजूदगी प्रशासनिक प्रयासों और वन संरक्षण नीतियों की सकारात्मक दिशा को दर्शाती है।
नक्सलवाद के साये से बाहर निकलता अबूझमाड़ अब केवल सुरक्षा के लिहाज से ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक संपदा, वन्यजीव संरक्षण और भविष्य की ईको टूरिज्म संभावनाओं के लिहाज से भी नई पहचान गढ़ता नजर आ रहा है। मुस्परसी क्षेत्र में दिखा नीलगायों का यह झुंड इसी बदलाव का सशक्त प्रमाण है।