जगदलपुर, 14 दिसम्बर . सोनी गली, जगदलपुर में साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में भारी ठण्ड के बावजूद कवि और श्रोता घंटों जमे रहे।
बस्तर विकासखण्ड से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री फणीन्द्रलाल देवांगन जी के मुख्य आतिथ्य और भूतपूर्व पार्षद श्रीमती दीप्ति पाण्डे, पूज्य सिंधी पंचायत जगदलपुर के उपाध्यक्ष श्री सुनील दादवानी, पूज्य सिंधी पंचायत जगदलपुर के सचिव श्री हरीश नागवानी एवं शासकीय इंजीनियरींग महाविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ प्रभाकर मिश्रा के आतिथ्य में काव्यगोष्ठी की शुरूआत हुयी। दीप प्रज्जवलन और अतिथि स्वागत के पश्चात उपस्थित कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाएं प्रस्तुत कीं।
शीर्षक पंक्तियां डॉ प्रकाश पैमाना ने प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरीं।
कवि सुरेन्द्र कुमार ने अंगद- रावण संवाद सुनाकर चित्र बनाया। तो गीता शुक्ला ने लव जिहाद पर चिंता व्यक्त करती रचना सुनायी।
सतरूपा मिश्रा ने गुलमोहर शीर्षक पर कविताएं सुनाकर दो विभिन्न चित्र खींचे।-
देखो खिलने लगे आज फिर गुलमोहर/ तपिश के बढ़ने के साथ साथ गुलमोहर की / ताजगी भी बढ़ने लगी। / अपने अंतर मन में न जाने कितने /मौसम सजाने लगी।
युवा कवियत्री डालेश्वरी पाण्डे ने मधुर स्वर में हल्बी में मां दंतेश्वरी की वंदना और गजल का पाठ कर सभा को तरंगित कर दिया।
अपनी रचनाओं के साथ साहित्य ऋषि लालाजी और अपने पिता श्री केशवलाल श्रीवास्तव जी की परम्परा को बढ़ाते हुये विनय श्रीवास्तव जी ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया। उनकी समकालीन गज़ल का एक शेर –
रब का है दर ये मेरे, मयखाना तो नहीं है/जा बैठ तू कहीं भी, तेरा खुदा नहीं है।
इसके अलावा अतिथि शीर्षक पर प्रस्तुत कुछ मुक्तक भी सुनाया। एक मुक्तक – दिल में मेरे खूब जगह है / तुम घर न आइयो मीत!/ कुटिया छोटी, तंग गली है/ मेरा कलंक लगे न प्रीत!
संस्था के उपाध्यक्ष लोककवि लोकमंच कलाकार नरेन्द्र पाढ़ी जी ने भतरी और हिन्दी में रचना पाठ किया-
’धन आय आमचो बेड़ा खाड़ा/ धन आये आमचो, नागर फार!’ कविता के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सच्चाई सुनायी।
युवा कवियत्री चमेली सुवासिता ने छत्तीसगढ़ी में कविता पाठ किया।
मोह मया ला छोड़, चार दिन के हे मेला/ हीरा कस ये देह, दिखाथे अब्बड़ खेला।
बहुभाषीय कवि अनिल शुक्ला ने शीत ऋतु पर कविता सुनाकर ग्रीष्म का अहसास करवा दिया।
बढ़ती ठण्ड जलता अलाव/ मां पकाती गोभी मटर पुलाव / सब एकजुट आग सेंकते सभी में होता एकता का भार / ठण्ड तू सहयोगिनी है तू जोड़ती परिवार को नहीं करती अलगाव!
शिरीष टिकरिहा जी ने छत्तीसगढ़ी कविता का पाठ किया।- ’घोर कलजुग आगे अईसे लागत हे/कमईया भूखावत हे, बनिया मन भोगावत हे।’
मुख्य अतिथि श्री फणीन्द्रलाल देवांगन जी ने अपनी श्रेष्ठ रचना का पाठ किया।
जाग सखा, सहचर मेरे/ मित्रवर, थिर है दुख-मेघ घनेरे / कृश अंतस, स्नेह-परत है/ निंद्रित केश बिखेरे!
डॉ प्रभाकर मिश्रा ने अपने उद्वोधन में साहित्य एवं कला समाज द्वारा विगत अनेक वर्षों से जारी साहित्य यात्रा की प्रशंसा की और कहा कि ऐसे प्रयासों से ही समाज में जागृति बनी रहती है।
सुनील दादवानी जी ने कार्यक्रम को आनंददायी और ऊर्जा भरने वाला बताया। ऐसे कार्यक्रमों की निरंतरता पर जोर दिया।
हरीश नागवानी जी ने कहा कि काव्य गोष्ठी में शामिल होकर कविता लिखने का मन होने लगा है। भविष्य में ऐसे कार्यक्रम करवाने का प्रयास स्वयं करेंगे।
श्रीमती दीप्ति पाण्डे जी ने नारी के उत्थान और उसके विकास पर प्रसन्नता व्यक्त की और इस पर एक कविता भी पढ़ी। उन्होंने साहित्य के उज्जवल भविष्य के लिये स्कूल कालेज के बच्चों को जोड़ने की सलाह दी। शोर शराबे के स्थान पर हमें चिंतनशील जमीनी कार्यक्रम करने चाहिये, ये उनका कहना था।
आशीष राय ने अपनी बात रखते हुये कहा कि ऐसे बौद्धिक साहित्यिक कार्यक्रमों से शहर जीवंत रहता है। साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर का निरंतर आयोजन सार्थक और आवश्यक है।
श्री सुरेश दलई, श्री आशीष राय, श्री विश्वनाथ शर्मा, श्रीमती शोभा शर्मा अंत तक अपनी उपस्थिति प्रदान कर कार्यक्रम में रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुये सनत सागर ने कई कविताओं का पाठ किया-
पंचर बनाता था जो जंगल के बीच वो भला इंसान निकला। / जब वो मरा तो उसके घर पंचर करने का सामान निकला।अंत में स्वल्पाहार के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।