संविदा शिक्षकों की वेदना; न सम्मानजनक वेतन और न स्थायित्व की गारंटी

= भूमिका ने उजागर किया ज्ञान का उजाला फैलाने वालों के स्याह पक्ष को

जगदलपुर। शिक्षा के विराट मंदिर में संविदा शिक्षक किसी दीपक की भांति टिमटिमा रहे हैं। वे ज्ञान का आलोक तो बांटते हैं, लेकिन उनका अपना ही जीवन अंधकारमय है। यह कैसी विडंबना है कि जो समाज के भविष्य को संवारते हैं, वही स्वयं अनिश्चितताओं की गहराइयों में धकेल दिए गए हैं।
सेजस मर्दापाल की व्याख्याता भूमिका जैन ने संविदा शिक्षकों की पीड़ा को बड़े ही मार्मिक तरीके से और सुगठित शब्दों में उजागर किया है। भूमिका जैन कहती हैं- संविदा शिक्षकों की सेवा स्थायित्वहीन है, मानो हवा के झोंके पर टिका कोई द्वीप। महीनों की अथक तपस्या, कठिन परिश्रम और मस्तिष्क की धधकती ज्वाला के बावजूद उन्हें सम्मानजनक वेतन नहीं, बल्कि अपमानजनक मानदेय ही मिलता है। विद्यालय की नींव को सुदृढ़ करने वाले ये शिक्षक आज व्यवस्था की उपेक्षा के शिकार हैं। कभी-कभी तो लगता है मानो उनका अस्तित्व सिर्फ सांख्यिकी आंकड़ों तक सीमित कर दिया गया है। व्याख्याता भूमिका जैन बिना बिना कोई भूमिका बांधे और बगैर लाग लपेट के साफ शब्दों में कहती हैं- शिक्षक शब्द जो कभी श्रद्धा, गौरव और गरिमा का प्रतीक था, आज अस्थायी नियुक्ति की बेड़ियों में जकड़कर वेदना का पर्याय बना दिया गया है। उनकी व्यथा इतनी गहन है कि शब्द भी मौन हो जाते हैं। समान कार्य के लिए समान वेतन का अभाव, सेवा में स्थायित्व की कमी और निरंतर असुरक्षा। ये सभी उनके जीवन की दहला देने वाली त्रासदियां हैं। फिर भी वे कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होते। भले ही वेतन की अल्पता उनके घर के चूल्हे की आग को मंद कर देती हो, परंतु वे दूसरों के बच्चों के जीवन में ज्ञान का सूर्योदय करने का कार्य करते रहते हैं। भूमिका जैन के मुताबिक संविदा शिक्षकों की यह दर्दभरी कथा केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं है, बल्कि यह समाज की संवेदनशीलता को आईना भी दिखा रहा है।

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