करीम
जगदलपुर. जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री गौर नाथ नाग ने कहा है- मंहगाई ने महिलाओं को भाजपा से दूर किया जैसे- जैसे छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे- वैसे भाजपा के नेताओं के सुर बदलने लगे हैं। राज्य में 15 साल सरकार की कमान जिन डा रमन सिंह को सौंपी गई थी, उनके बजाए कमल फूल को चेहरा बताया जा रहा है। कारण स्पष्ट है, 2018 में डा रमन सिंह के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में भाजपा पार्टी का हश्र बस्तर संभाग समेत समूचे छत्तीसगढ़ में देख चुकी है। भाजपा कोई रिस्क लेना नहीं चाहती इसलिए राजस्थान की तर्ज पर यहां भी कोई नेतृत्व घोषित नहीं करना चाहती है।
नेतृत्व घोषित करने की अपनी समस्याएं हैं, जिन्हें पार्टी जानती है। इधर छत्तीसगढ़ में दिक्कत यह है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की टक्कर का उनके पास किसी भी समुदाय या वर्ग का नेता नहीं है। बीच-बीच में रमेश बैस को लाने का शगूफा छोड़ा जाता है लेकिन बैस खुद 2003 में उनके साथ पार्टी द्वारा किए गए व्यवहार को भूले नहीं होंगे जब उन्होने पार्टी को छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कराने एड़ी- चोटी का जोर लगा दिया था और सत्ता पाने के बाद उनकी बजाय केंद्रीय कपड़ा मंत्री को राज्य सौंप दिया गया था। इससे सबक लेते बैस शायद ही राज्य की राजनीति में लौटें। मोदी और शाह का करिश्मा भी चूक गया है, कर्नाटक चुनाव इसका नतीजा है। आदिवासी बाहुल्य राज्य में हिन्दुत्व तथा धर्मांतरण का शगूफा स्थानीय नेता पिछले एक साल से छोड़ रहे हैं। आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद पटाखे भी छोड़े और मिठाई बांटी लेकिन संसद भवन के लोकार्पण से जिस तरह उन्हें दूर रखा गया यह बात स्वयं आदिवासी समुदाय को खटकी है। इस विषय पर वोट मांगना अपनी खटिया खुद खड़ी करने से कम रिस्की नहीं है। इन तमाम बातों का चिंतन करने के बाद भाजपा की कुल उम्मीद उसके कार्यकर्ता बने हुए हैं लेकिन कार्यकर्ताओं का बड़ा तबका यह मानता है कि चुनाव से पहले तो उनकी खूब पूछ- परख होती है लेकिन सत्ता मिलने के बाद सप्लायर, ठेकेदार व सत्ता के दलालों के चंगुल में नेता फंसे रहते हैं इसलिए अपने नेताओं के चरित्र रूपान्तरण को लेकर वे भी सशंकित हैं। एक ओर जहां भाजपा कार्यकर्ता यह चर्चा कर रहे हैं कि एक बार भाजपा को और छत्तीसगढ़ में सत्ता से दूर रहना चाहिए ताकि पार्टी में सही नेतृत्व उभर सके वहीं दूसरी ओर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह कहकर उन्हें सहलाने में लगा है कि कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ व जान हैं। विपक्षी दल भाजपा के आंदोलनों से उनकी दूरी भी नेताओं के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। फिर कार्यकर्ताओं के घरों का चूल्हा- चौका भी तो मंहगाई की मार झेल रहा है। ऐसे में भाजपा अपना हश्र आगामी सभी चुनावों में क्या होगा, यह जान रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि हम निर्देशों को पूरा करने की खानापूर्ति कर रहे हैं। देश में महिला पहलवानों के साथ जो कुछ हो रहा है, उसने भी रही- सही कमर तोड़ दी है। पहले मंहगाई और अब पाक्सो एक्ट के आरोपी के पक्ष लेने के मामले ने तो आधी आबादी को ही भाजपा से दूर कर दिया है। नेताओं के मुताबिक- वे किस मुंह से महिला मतदाताओं से भाजपा के लिए वोट मांगेंगे।