दोगा माला” कार्यशाला — बस्तर की सांस्कृतिक जड़ों को पुनः जीवित करने का प्रयास

जगदलपुर । बस्तर की धरती अपनी जीवंत कला, परंपरा और प्रकृति से जुड़े जीवन दर्शन के लिए प्रसिद्ध रही है। इन्हीं परंपराओं में से एक है ‘दोगा माला’, जिसे गोंड आदिवासी पुरुष अपने गले में पहनते हैं। यह केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि उनकी सामाजिक पहचान, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।
‘दोगा माला’ की बनावट इसे विशिष्ट बनाती है — इसमें सफेद, लाल और नीले रंग के बारीक मोती लाल ऊन के धागे में बारीकी से पिरोए जाते हैं। यह प्रक्रिया मेहनत और धैर्य से भरी होती है। पहले यह कार्य पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से किया जाता था — सल्फी, सिहाड़ी, कोसा और शिशल जैसे पेड़ों की छाल से धागा बनता था, और मोती के स्थान पर गूंज, सिहाड़ी या जौ के बीज प्रयोग में लाए जाते थे। धीरे-धीरे बाजार संस्कृति के प्रभाव से प्लास्टिक मोती और सिंथेटिक धागे आए, जिससे निर्माण आसान तो हुआ, पर कला की आत्मा कमजोर पड़ने लगी।
फिर भी इसके रंग — लाल, सफेद, नीला और काला — आज भी बस्तर की आत्मा को प्रतिबिंबित करते हैं।
लाल जीवन और ऊर्जा का प्रतीक है, सफेद पवित्रता और संतुलन का, नीला आकाश और अनंत का, काला धरती और स्थिरता का।
इन्हीं रंगों में बस्तर की सादगी, संघर्ष और सौंदर्य झलकता है।
इसी जीवित परंपरा को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से सूरूज ट्रस्ट, बस्तर द्वारा 11 से 13 अक्टूबर 2025 तक गुड़ियापदर (जिला बस्तर) में तीन दिवसीय ‘दोगा माला कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है।
गुड़ियापदर एक Forest Rights Act (FRA) प्राप्त ग्राम है, जहाँ सुकमा से विस्थापित गोंड समुदाय निवास करता है। इस गाँव को इसलिए चुना गया ताकि समुदाय के भीतर ही परंपरा का पुनर्सृजन और स्वाभिमान दोनों का विकास हो सके।
इस कार्यशाला का उद्देश्य केवल कला को सहेजना नहीं, बल्कि स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें अपने सांस्कृतिक ज्ञान से जोड़ना भी है — ताकि पारंपरिक कौशल, आत्मनिर्भरता और पहचान साथ-साथ आगे बढ़ सकें।
इस पूरी पहल के पीछे सूरूज ट्रस्ट की अध्यक्ष दीप्ति ओग्रे का दृष्टिकोण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। दीप्ति लंबे समय से बस्तर की आदिवासी कलाओं, लोकनाट्य और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण पर कार्य कर रही हैं। उनके नेतृत्व में ट्रस्ट ने अनेक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परियोजनाओं के माध्यम से यह साबित किया है कि समुदाय के भीतर से परिवर्तन तभी संभव है जब कला और परंपरा को सम्मान दिया जाए।
दीप्ति ओग्रे का मानना है —
“बस्तर की परंपराएँ केवल अतीत की निशानी नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक भविष्य की जड़ें हैं। जब हम उन्हें बचाते हैं, तो अपने अस्तित्व को सुरक्षित करते हैं।”
‘दोगा माला कार्यशाला’ उसी सोच का विस्तार है — एक ऐसा प्रयास जो बस्तर की सांस्कृतिक आत्मा को पुनः जागृत करता है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ता है।
इस कार्यशाला को सफलतापूर्वक संपन्न कराने में श्री अनिल लुंकण (संचालक – हेलो बस्तर), सोफ़ी हार्टमैन (संचालक – होलिडेज़ इन रूरल इण्डिया), ब्रिटिश पर्यटक एलेक्स एवं हैरिएट एवं शकील रिज़वी (संचालक – बस्तर ट्राइबल होमस्टे) का सहयोग रहा।

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