बकरों के लिए कुटिया का निर्माण

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जगदलपुर, 20 अक्टूबर। बस्तर दशहरा विश्व के सबसे अधिक दिनों तक चलने वाले पर्वों में से एक है जो लगभग 75 दिनों तक चलता है, इस वर्ष यह पर्व श्रावण मास के तिथियां में अधिकमास होने के फलस्वरुप 107 दिनों तक चलेगा । हरियाली अमावस्या से प्रारंभ होकर मावली देवी की विदाई तक चलने वाले पर्व में अनेक विधान तथा सुचारू रूप से संचालन हेतु विभिन्न व्यवस्थाएं की जाती है, उनमें से एक ष्बोकड़ा लाड़ीष् की व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से प्रतीकात्मक हो गई है।
बस्तर के जाने-मानें इतिहासकार रूद्रनारायण पाणिग्राही ने बताया कि ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के विभिन्न रस्मों व अनुष्ठानों में सैकडों पशु पक्षियों की बलि दी जाती है। इन बकरों को रखने के लिए एक लाड़ी बनाया जाता है, जिसे  बोकड़ा लाड़ी कहा जाता है, जिसमें 70 से 80 बकरे रखे जाते थे, इन बकरों को सुबह-शाम चराने और संभालने की जिम्मेदारी भी तय होती थी जिसे एक चरवाहा पर्व की समाप्ति तक जिम्मेदारी पूर्वक देखभाल करता था और अलग-अलग दिनों में रंगों के अनुसार बलि के लिए उपलब्ध कराता था।
बोकड़ा लाड़ी अब केवल रस्मों के लिए बनता नजर आ रहा है, अब इस लाड़ी में पहले  जैसा बकरा नजर नहीं आता । रियासत कालीन दौर में जब ग्रामीण बकरा कोठी में जमा करते थे तो कोठिया अथवा भंडारी उन बकरों को अपने दस्तावेजों में दर्ज करके चरवाहा को सौंप देता था, अब कमेटी को बकरों की व्यवस्था स्वयं करनी होती है , अलग-अलग अनुष्ठानों में सैकड़ो बकरों की बलि दी जाती है । अब यह व्यवस्था टेंपल कमेटि एक समिति गठित करके निविदा के तहत आवश्यकता अनुसार बकरों का मूल्य निर्धारण करवाती है और जिस व्यक्ति का निविदा पारित हो जाता है वह आयोजन के दौरान विभिन्न अनुष्ठानों के लिए निश्चित आकार प्रकार और रंगों का बकरा उपलब्ध कराता है । इस तरह कमेटी ने भले ही अनुष्ठानों के लिए अपनी समस्या हल कर ली हो किंतु आने वाले समय में बकरा लाड़ी और चरवाहा परिवार जो वर्तमान में रस्मो का एक हिस्सा माना जा रहा है उसका क्या होगा कहना मुश्किल है ।

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