केंद्रीय गृह मंत्री बस्तर दशहरा में पहली बार मुरिया दरबार में शामिल
जगदलपुर, केंद्रीय गृह मंत्री आज बस्तर दशहरा के ऐतिहासिक मुरिया दरबार में शामिल होने जगदलपुर पहुँचे। सदियों पुराने इस आदिवासी परिषद में किसी केंद्रीय गृह मंत्री का पहला आगमन है। परंपरागत रूप से, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री इस आयोजन की अध्यक्षता करते रहे हैं, जिससे यह यात्रा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक घटनाक्रम बन गई है।
इस हाई-प्रोफाइल आयोजन के लिए जगदलपुर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। अधिकारियों के अनुसार, सुचारू कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए 23 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, 50 डीएसपी और 300 से अधिक सीआरपीएफ कर्मियों को तैनात किया गया है। एहतियात के तौर पर शहर में ’’ड्रोन कैमरों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
गृह मंत्री ने मुरिया दरबार जाने से पहले, बस्तर की अधिठात्री देवी दंतेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना के देश की सुख स्मृद्धि की कामना की। बस्तर दशहरा के दौरान आयोजित यह दरबार आदिवासी नेताओं और सामुदायिक प्रतिनिधियों का एक प्रतीकात्मक समागम है, जो बस्तर की संस्कृति के गहरे लोकतांत्रिक लोकाचार को दर्शाता है।
बाद में, उनका लालबाग में स्वदेशी मेले में भी भाग लेने का कार्यक्रम है, जहाँ स्थानीय कारीगर और उत्पादक स्वदेशी उत्पादों का प्रदर्शन करेंगे। इस कदम को स्थानीय संस्कृति के समर्थन और पारंपरिक शिल्पकला को बढ़ावा देने के एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
यह यात्रा दुनिया के सबसे लंबे समय तक चलने वाले त्योहार, बस्तर दशहरा और इसकी अनूठी आदिवासी विरासत पर राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती ध्यान को रेखांकित करती है।
क्या है मुरिया दरबार
बस्तर दशहरे के दौरान मुरिया दरबार के बारे में अक्सर आपने सुना होगा। मुरिया दरबार दशहरे की आखिरी रस्म के तौर पर की जाती है मगर सच तो यह है कि यह आखिरी रस्म नहीं है। मावली देवी की बिदाई के साथ बस्तर दशहरे का समापन होता है।
दरअसल मुरिया दरबार एक ऐसी बैठक है जो परम्परानुसार दशहरे में ही आयोजित की जाती है। जिसमें बस्तर जिले से जुड़ी समस्याओं का चर्चा की जाती रही है और इस बैठक में राज परिवार के सदस्यों के अलावा, मंत्री, नेता तथा प्रशासनिक अफसर अनिवार्य रूप से शामिल होते हैं
कब हुई मुरिया दरबार की शुरूआत
इतिहास के पन्नों को उलटने पर यह ज्ञात होता है कि पहली बार मुरिया दरबार 8 मार्च 1876 को लगा था यानि आजादी के पहले। इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था। बस्तर संभाग में कई जनजातियां रहती हैं जैसे – हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया इत्यादि । अतः इन जनजातियों के पहचान के लिए इस बैठक को मुरिया दरबार कहा जाने लगा । बस्तर में बोली जाने वाली हल्बी में मुर का मतलब है शरू या प्रारम्भ । मूरिया बस्तर के मूल निवासी होते हैं ।
क्या होता था मुरिया दरबार
इस दरबार में उस वक्त रखी गई समस्याओं का तुरन्त समाधान किया जाता था। और जो समस्याएं विभिन्न क्षेत्रों से राजा तक आती थी वे रियासत के मांझी, मुखिया, कोटवार, चालकी, नाईक, पाईक आदि जनप्रतिनिधियों के माध्यम से आती थीं समस्याओं पर चर्चा की जाती थी। कोशिश ये की जाती थी कि समस्याएं आगे चलकर बड़ी समस्या न खड़ी करें । आज की षिकायतें लम्बी और लम्बित रहतीं हैं ।