गिरते शैक्षणिक स्तर के बीच शताब्दी के जश्न की तैयारी

जगदलपुर
बस्तर हाई स्कूल अपनी स्थापना का शताब्दि वर्ष मनाने जा रहा है। 1926 में बने स्कूल में तब से लेकर आज पर्यन्त अनगिनत राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी तथा चोटी के व्यापारी यहाँ रहकर शिक्षा प्राप्त कर चुके है। सभी देश विदेश के कोने-कोने में अपनी सेवाएं दे रहें है। शताब्दि वर्ष के जश्न को लेकर विद्यालय के भूतपूर्व छात्रों की उत्सुकता सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है । प्राचार्य बीएस रामकुमार ने बताया कि नवम्बर में जश्न मनाया जाएगा जिसमें बड़ी संख्या में भूतपूर्व विद्यार्थियों का जमघट होने की उम्मीद है। इसी विद्यायल से शिक्षा प्राप्त वर्तमान विधायक किरण सिंह देव व महापौर संजय पांडे ने पिछले दिनों इस संबंध में विधालय में बैठक लेकर आवश्यक निर्देश एवं सुझाव दिए है व कार्यक्रम के तैयारी की जानकारी ली।

शिक्षा के स्तर की गिरावट

इन 100 वर्षाे में विद्यालय में काफी उतार चढ़ाव देखें है। इसी विद्यालय में तीन पीड़ियों को शिक्षा दे चुके नागेश्वर नायडू स्वीकार करते हैं कि विद्यालय सिमट रहा है । इसे लेकर कुछ दलीले है जैसे छात्रों को केन्द्रित इस विद्यालय में बाद में छात्राओं को प्रवेश दिलाने का नियम बना

जिससे जनमानस में इस सवाल ने जन्म लिया कि क्या इस विद्यालय से विद्यार्थियों की संख्या कम हो रही है? वहीं दूसरी तरफ कृषि पढ़ाने वाले शिक्षक हरेन्द्र सिंह राजपूत कहते है जब वे यहां बतौर छात्र 1998 में आए तो यहां कृषि कार्य के लिए एक बड़ा भू-भाग होता था जिसमें वर्तमान में लायब्रेरी संचालित होता है । अब वह विद्यायल के ही छोटे भू-भाग पर ही कृषि कार्य संचालित हो रहा है । सीमित संख्या में मौजूद विद्यार्थी अपनी कृषि की प्रयोगिक कक्षाओं से विद्या-अर्जन करते हैं।

बस्तर में शिक्षा के स्तर में लगातार गिरवट देखी गई। इसे लेकर 82 वर्षीय पूर्व शिक्षक और नायडू ने कहा कि “पुराने दौर की शिक्षा पद्धति कहीं बेहतर थी। वह गुरु-केंद्रित शिक्षा थी, जिसमें छात्रों की ठोस पृष्ठभूमि तैयार होती थी। आज की तथाकथित छात्र-केंद्रित शिक्षा बच्चों में अनुशासन की कमी और अनुशासनहीनता को जन्म दे रही है।”

उन्होंने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में लागू सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) और ‘सर्वांगीण विकास’ जैसी अवधारणाओं पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। नायडू के अनुसार, “बच्चों के सर्वांगीण विकास के नाम पर शिक्षा का पतन किया जा रहा है। शिक्षक को पढ़ाई की बजाय दूसरे कामों में उलझा दिया जाता है, जिससे उनका शैक्षिक योगदान कम हो रहा है।
इसे देखकर सवाल यह पैदा हो रहा है कि क्या आने वाली नस्लें इस स्कूल का वह स्वरूप देख पाएंगी जो पहले था? कही स्कूल निजी हाथों में तो नहीं चला जाएगा?

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